बेमेतरा (छत्तीसगढ़): कृषि प्रधान बेमेतरा जिले ने जल संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक पहल की है। जिले की सभी 425 ग्राम पंचायतों ने सर्वसम्मति से ग्रीष्मकालीन धान की खेती पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया है।
📉 जल संकट के कारण
- कम वर्षा: वर्ष 2024-25 में जिले में मात्र 600 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जबकि औसत वर्षा 995 मिमी है।
- भूजल स्तर में भारी गिरावट: सीमित वर्षा के कारण भूमिगत जल स्तर तेज़ी से नीचे चला गया, जिससे सैकड़ों हैंडपंप और नलकूप सूख गए।
- अत्यधिक जल दोहन: पिछले रबी सीजन में लगभग 26,680 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई की गई थी, जिसने जल दोहन और बिजली की खपत को अत्यधिक बढ़ा दिया था।
🌾 वैज्ञानिक अनुशंसा और वैकल्पिक फसलें
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर जैसे प्रमुख संस्थानों ने भी ग्रीष्मकालीन धान को भूजल दोहन का मुख्य कारण बताया है।
प्रशासन ने किसानों से अपील की है कि वे कम पानी में उपजने वाली दलहन, तिलहन, मक्का, मूंग, सूरजमुखी, और रागी जैसी फसलों को अपनाएं।
आय का आकर्षण: विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, वैकल्पिक फसलें धान की तुलना में अधिक शुद्ध आय दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, मक्का से ₹1,14,000 और सूरजमुखी से ₹1,08,978 प्रति हेक्टेयर तक की आय संभव है।
✅ आगे की रणनीति
जिला प्रशासन ने किसानों से ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई और मल्चिंग जैसी जल संरक्षण तकनीकों को अपनाने का आग्रह किया है। इसके साथ ही, गांवों में कुएं, तालाब और नालों के पुनर्जीवन के लिए सामूहिक भागीदारी सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है।
बेमेतरा का यह सामूहिक और सर्वसम्मत निर्णय न केवल तात्कालिक जल संकट को कम करने में सहायक होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सतत कृषि और पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक मजबूत मिसाल कायम करेगा।
