गरियाबंद (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से अंधविश्वास और गरीबी की भयावह तस्वीर सामने आई है, जिसने एक हंसते-खेलते मजदूर परिवार को हमेशा के लिए उजाड़ दिया। मैनपुर ब्लॉक के धनोरा गांव में एक मजदूर दंपत्ति ने अपने तीन मासूम बच्चों को बुखार के कारण खो दिया। बच्चों को अस्पताल ले जाकर सही इलाज कराने के बजाय, परिजन झाड़-फूंक और बैगा-गुनिया के चक्कर में फंसे रहे, जिसके कारण बच्चों की हालत बिगड़ती गई और उन्होंने एक-एक करके दम तोड़ दिया।
स्वास्थ्य सेवाओं पर अंधविश्वास हावी
जानकारी के अनुसार, डमरुधर नागेश पेशे से मजदूर हैं। हाल ही में वह अपने परिवार के साथ ससुराल गए हुए थे, जहां उनके तीनों बच्चे—8 वर्षीय बेटी अनिता नागेश, 7 वर्षीय बेटा ऐकराम और 4 वर्षीय बेटा गोरेश्वर नागेश—बीमार पड़ गए और उन्हें तेज बुखार आने लगा।
परिजनों ने शुरुआत में किसी झोलाछाप डॉक्टर से इलाज कराया, लेकिन जब बच्चों की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ, तो वे अपने गांव धनोरा लौट आए। इसके बाद माता-पिता ने आधुनिक चिकित्सा पर भरोसा करने के बजाय, सदियों से चली आ रही अंधविश्वासी प्रथाओं का सहारा लेना शुरू कर दिया। वे अपने बच्चों को लेकर बैगा-गुनिया के पास झाड़-फूंक कराने पहुंच गए, जिसे उनकी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
एक ही दिन तीन बच्चों की मौत से सन्न रह गया गांव
अंधविश्वास के चलते सही समय पर इलाज न मिलने के कारण बच्चों की हालत तेज़ी से बिगड़ने लगी। 11 नवंबर का दिन इस परिवार के लिए काल बनकर आया।
- पहली मौत: 8 वर्षीय बेटी अनिता नागेश की हालत जब गंभीर हुई, तब परिजन उसे आनन-फानन में अस्पताल ले जाने के लिए निकले, लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसने रास्ते में दम तोड़ दिया।
- दूसरी मौत: बेटी की मौत के बाद 7 वर्षीय बेटे ऐकराम की हालत भी बिगड़ गई। परिजन उसे देवभोग ले जा रहे थे, लेकिन रास्ते में ही इस मासूम ने भी अंतिम सांस ली।
- तीसरी मौत: उसी शाम, 4 वर्षीय सबसे छोटे बेटे गोरेश्वर नागेश को परिजन जंगल के किसी बैगा के पास झाड़-फूंक के लिए ले जा रहे थे। रास्ते में उसकी भी तबीयत इतनी बिगड़ गई कि उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया।
इस दर्दनाक घटना ने पूरे धनोरा गांव को सन्न कर दिया। एक ही परिवार के तीन बच्चों की चंद घंटों के अंतराल में हुई मौत के बाद गांव में मातम पसरा हुआ है।
डॉक्टरों ने बताई लापरवाही की वजह
इन मौतों पर स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि यह गंभीर लापरवाही का मामला है। डॉक्टरों का कहना है कि परिजन बच्चों को इलाज के लिए अस्पताल नहीं लाए, जबकि उन्हें जांच कराने के लिए आने को कहा गया था। यदि समय रहते बच्चों को सही चिकित्सा सहायता मिल जाती, तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी।
यह घटना छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और अंधविश्वास के गहरे जड़ जमाने की गंभीर समस्या को उजागर करती है। प्रशासन और स्थानीय प्रतिनिधियों की ओर से इस मामले पर संज्ञान लिया गया है, और स्वास्थ्य जागरूकता अभियान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है, ताकि ऐसी हृदय विदारक घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

