छत्तीसगढ़ म जेठौनी तिहार ला बड़े धूम-धाम ले मनाए जाथे। ये तिहार कार्तिक महीना के देवउठनी एकादशी के दिन पड़थे, जेला कई जगा छोटकुन देवारी घलो कहे जाथे। ये दिन ल सनातन धर्म म तुलसी बिहाव के रूप म घलो जाने जाथे।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ लोक-जीवन म जेठौनी तिहार के बहुत खास महत्तव हे।

🌿 तुलसी अउ शालिग्राम के बिहाव
जेठौनी के दिन, चार महिना के चौमासा (बरसात) पूरा हो जाथे अउ भगवान विष्णु ह अपन बिछौना ले जागत हें। एखर बाद ही सबो किसम के मांगलिक काम (बिहाव, मुंडन आदि) शुरू होते।
- तुलसी चौरा पूजा: घर-घर म तुलसी चौरा के विशेष पूजा करे जाथे। तुलसी माता ला नवा कपड़ा अउ सिंगार के सामान चढ़ाए जाथे।
- मंडप: लोगन ह कुशियार (गन्ना) के मंडप बनाके ओखर भीतर तुलसी अउ भगवान शालिग्राम के पूजा-अर्चना करथें।
- भोग: पूजा म चना भाजी, तिवरा भाजी, अमरूख (अमरूद), कंदमूल अउ सबो नवा मौसमी साग-भाजी अउ फल के भोग लगाए जाथे।

💃 राउत नाचा अउ लोक-संस्कृति
जेठौनी के दिन ले ही छत्तीसगढ़ म राउत नाचा (अहीर नाचा) के सिलसिला शुरू हो जाथे, जे कार्तिक पूर्णिमा तक चलथे।
- मालिक जोहारना: राउत मन अपन मालिक (किसान) के घर जाके जोहार करथें अउ सुख-समृद्धि के असीस (आशीर्वाद) देवथें।
- सुख धना: किसान मन ग्वाला मन ला सूपा म धान, पइसा अउ कपड़ा भेंट करथें, जेला सुख धना कहे जाथे।
- हाथा देना: अहीर समाज के सियान मन किसान मन के घर म धान कोठी अउ तुलसी चौरा ऊपर गोबर के हाथा (पारंपरिक चित्र/थाप) देके मंगल कामना करथें।
- टुकना जलाना: कई गाँव म बाँस के बने जुन्ना टुकना-चरिहा ला जलाके आगी तापथें। अइसन माने जाथे कि येखर ले घर के सबो दूख-पीरा दूर होथे अउ घर म समृद्धि आथे।
ए तिहार किसान मन के घर नवा धान के फसल आए के खुसी अउ धार्मिक आस्था के सुंदर संगम आए।

जेठौनी तिहार के लोकगीत (तुलसी बिहाव के बेरा)
“झूमर-झूमर देवठनी परब आगे ना…”
| झूमर-झूमर देवठनी परब आगे ना, | झूमते हुए, देवउठनी का पर्व आ गया है, |
| छोटे देवारी कस जग-मग लागे ना। | यह छोटी दिवाली जैसा जगमग लग रहा है। |
| जय हो मैया वो, तुलसी मैया वो… | जय हो माँ, हे तुलसी माता! |
| अंतरा १: | |
| आगे हे जेठौनी तिहार, | यह जेठौनी का त्योहार आ गया है, |
| तुलसी रानी करथें सिंगार। | तुलसी रानी अपना सोलह श्रृंगार कर रही हैं। |
| सुआ पालो, चुनरी पालो, काँच के चूड़ी, | तोता (चिड़िया), चुनरी (ओढ़नी), काँच की चूड़ियाँ, |
| सोलहो सिंगार तुलसी माता ला भाए ना। | सोलह श्रृंगार तुलसी माता को प्रिय लगते हैं। |
| आगे हे जेठौनी तिहार… | यह जेठौनी का त्योहार आ गया है… |
| अंतरा २: | |
| कुशियार के मंडप ह आज सजाए हे, | गन्ने का मंडप आज सजाया गया है, |
| शालिग्राम ला तुलसी से बिहाव कराए हे। | भगवान शालिग्राम का तुलसी जी से विवाह कराया जा रहा है। |
| बेर-भाजी, चना भाजी भोग म धरान, | बेर की भाजी, चने की भाजी भोग में रखी गई है, |
| देव मन चार महिना सुत के अब जागइन। | देवता अब चार महीने की नींद के बाद जाग गए हैं। |
| आगे हे जेठौनी तिहार… | यह जेठौनी का त्योहार आ गया है… |
जेठौनी तिहार म तुलसी माता के पूजा के गीत अउ राउत नाचा के दोहा (जिसे ग्वाले गाते हैं) सबसे खास होथे।
🚩 राउत नाचा के दोहा (जेठौनी तिहार के बाद)
राउत मन अपन मालिक के द्वार म नाचे के बाद, उमन ए दोहा ला गाके आशीर्वाद देथें।
| दोहा (Doha – छत्तीसगढ़ी) | भावार्थ (Meaning – हिन्दी/English) |
|---|---|
| “जइसे मालिक के दिए दिए रे भैया,” | हे भाई, जैसा मालिक ने दिया है (अन्न-धन), |
| “तइसे देवो आशीष।” | वैसा ही हम आशीर्वाद देते हैं। |
| “अन्न धन तोर कोठी भरे रे भैया,” | अन्न और धन से तुम्हारा कोठा (अनाज भंडार) भरा रहे, |
| “जुग जुग जीयो लाख बरीस।” | तुम युगों-युगों तक, लाखों वर्षों तक जियो। |
| “गउ माता के महिमा भैया, नी कर सकी बखान रे।” | गाय माता की महिमा का बखान नहीं किया जा सकता, |
| “नाच कूद के जेला चराइस, कृष्णचंद्र भगवान रे।” | जिसे नाच कूद कर भगवान कृष्ण ने चराया था। |
| “गौरी के गनपति भये, अंजनी के हनुमान रे।” | गौरी (पार्वती) के पुत्र गणपति हैं, अंजनी के पुत्र हनुमान हैं, |
| “कालिका के भैरव भये, कौसिल्या के लछमन राम रे।” | कालिका (महामाया) के भैरव हैं, कौसल्या के लक्ष्मण और राम हैं। |
- आशीष: राउत मन किसान के सुख, लंबी उमर अउ अनाज के भंडार भरे रहे के कामना करथें।
- भक्ति: दोहा म भगवान कृष्ण (जे ग्वाला/राउत रहिन), गणपति, हनुमान, अउ राम के स्तुति करे जाथे।
- गौरव: ए दोहा अपन समुदाय (गहिरा/यादव) के गौरव ला घलो बताथे, काबर कि भगवान कृष्ण खुद गाय चराने वाला ग्वाला रहिन।
जेठौनी तिहार के आस-पास छत्तीसगढ़ म मनाए जाने वाला सबले लोकप्रिय अउ सुंदर नारी नृत्य सुआ नृत्य के बारे म जानकारी:
🟢 सुआ नृत्य (Sua Nacha)
सुआ नृत्य ल गौरी नृत्य घलो कहे जाथे। यह छत्तीसगढ़ के महिला मन के एक पारंपरिक अउ समूह नृत्य आए, जेला मुख्य रूप ले दीपावली अउ जेठौनी तिहार (देवउठनी एकादशी) के बीच म करे जाथे।

👯 सुआ नृत्य के विशेषता
- अर्थ: ‘सुआ’ के मतलब होथे तोता (Parrot)। ए नृत्य म महिला मन तोता के माध्यम ले अपन मन के बात अउ पीड़ा ला बयां करथें। तोता ला आत्मा के प्रतीक माने जाथे।
- नर्तक: केवल महिला मन ए नृत्य करथें।
- पहनावा: महिला मन रंगीन साड़ी, घाघरा अउ पारंपरिक छत्तीसगढ़ी गहना (जैसे खिनवा, पहुँची) पहिरथें।
- साज-सज्जा: नर्तक मन के बीच म लकड़ी के एक टोकनी (टोकरी) रखे जाथे, जेमा सुआ (तोता) अउ गौरा-गौरी (शिव-पार्वती) के प्रतीक रखे जाथें।
- संगीत: नृत्य के बेरा म महिला मन ताल देहे बर ताली बजाथें, अउ ओखर बीच म एक या दू झन महिला ह गाथें। एमा कोनो बाजा के उपयोग नहीं करे जाथे (कभू-कभू बाद म ढोलक के प्रयोग होथे)।

🎤 गीत के भाव (सुआ गीत)
सुआ गीत म खास करके नारी जीवन के प्रेम, विरह, सुख-दुख, अउ गौरी-गौरा के महिमा ला बताए जाथे।
- विषय: ये गीत म भाई-बहिनी के मया, पति के दूर जाए के पीरा, अउ सुख-समृद्धि के कामना होथे।
- प्रसिद्ध पंक्ति: सुआ गीत के सबसे खास हिस्सा होथे जब महिला मन दोहराथें: ”जा रे सुअना, जा रे सुअना, जाके पूछबे हाल…” (हे तोता, जा और जाकर हाल पूछना…)

